सहरा का पता दे न समुंदर का पता दे
सहरा का पता दे न समुंदर का पता दे
अच्छा हो कि अब मुझ को मिरे घर का पता दे
है कौन मिरा दुश्मन-ए-जाँ मुझ को ख़बर है
कब मैं ने कहा मुझ को सितमगर का पता दे
ये रात अमावस की तो काटे नहीं कटती
अब आ के मुझे माह-ए-मुनव्वर का पता दे
ख़तरे में पड़ी जाती है मक़्तूल की पहचान
शायद ही कोई शहर में अब सर का पता दे
बे-सम्त-ओ-जेहत भीड़ में शामिल न हो उस से
उम्मत का पता पूछ पयम्बर का पता दे
मैदान है ख़ाली कोई परचम है न सर है
है कौन जो खोए हुए लश्कर का पता दे
अब आख़िरी तारा भी हुआ आँख से ओझल
ऐ आसमाँ अब सुब्ह के मंज़र का पता दे
(444) Peoples Rate This