Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_78f8c6f28d0fecf514ab8210fc193437, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
रुख़ बदलते हिचकिचाते थे कि डर ऐसा भी था - नश्तर ख़ानक़ाही कविता - Darsaal

रुख़ बदलते हिचकिचाते थे कि डर ऐसा भी था

रुख़ बदलते हिचकिचाते थे कि डर ऐसा भी था

हम हवा के साथ चलते थे मगर ऐसा भी था

लौट आती थीं कई साबिक़ पतों की चिट्ठियाँ

घर बदल देते थे बाशिंदे मगर ऐसा भी था

वो किसी का भी न था लेकिन था सब का मो'तबर

कोई क्या जाने कि उस में इक हुनर ऐसा भी था

पाँव आइंदा की जानिब सर गुज़िश्ता की तरफ़

यूँ भी चलते थे मुसाफ़िर इक सफ़र ऐसा भी था

तौलता था इक को इक अश्या-ए-मसरफ़ की तरह

दोस्ती थी और अंदाज़-ए-नज़र ऐसा भी था

ख़ुद से ग़ाफ़िल हो के जो पल भर न ख़ुद को सोचता

इस भरी बस्ती में कोई बे-ख़बर ऐसा भी था

हर नई रुत में बदल जाती थी तख़्ती नाम की

जिस को हम अपना समझते कोई घर ऐसा भी था

(397) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Nashtar Khaanqahi. is written by Nashtar Khaanqahi. Complete Poem in Hindi by Nashtar Khaanqahi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.