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कशिश तो अब भी ग़ज़ब की है नाज़नीनों में - नश्तर ख़ानक़ाही कविता - Darsaal

कशिश तो अब भी ग़ज़ब की है नाज़नीनों में

कशिश तो अब भी ग़ज़ब की है नाज़नीनों में

मगर वो चाँद चमकता नहीं जबीनों में

ये सब के चेहरों में यकसानियत सी कैसी है

हसीन-तर कोई जचता नहीं हसीनों में

जो मेरे ज़ेहन में थी सब्ज़ा-ज़ार ख़्वाब में थी

कहाँ वो फ़स्ल उगाई गई ज़मीनों में

शुऊर-ए-उम्र से अफ़्ज़ूँ हुई है उम्र-ए-शुऊर

हमारे साल गुज़रने लगे महीनों में

ज़बाँ से रोज़ मैं ताईद-ए-इज़्न करता हूँ

छुपे हैं बुत भी मगर मेरी आस्तीनों में

नुमाइशें न फ़ुरूई तकल्लुफ़ात यहाँ

कहाँ तुम आ गए हम बोरिया-नशीनों में

ब-जुज़ तुम्हारे नहीं कोई ख़ानक़ाही अब

मैं किस का नाम लिखूँ अपने नुक्ता-चीनों में

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In Hindi By Famous Poet Nashtar Khaanqahi. is written by Nashtar Khaanqahi. Complete Poem in Hindi by Nashtar Khaanqahi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.