इल्म किस को था कि तर्सील-ए-हवा रुक जाएगी
इल्म किस को था कि तर्सील-ए-हवा रुक जाएगी
अगले मौसम तक मिरी नश्व-ओ-नुमा रुक जाएगी
हो चुकेगा दफ़अतन ज़ौक़-ए-समाअत मुख़्तलिफ़
आते आते मेरे होंटों तक सदा रुक जाएगी
तू ही क्यूँ नादिम है इतनी मेरे घर की आबरू
किस के सर पर ऐसी आँधी में रिदा रुक जाएगी
अब तमाशा देखने वालों में हम-साया भी है
टूटती छत मेरे चिल्लाने से क्या रुक जाएगी
कारवाँ को घेर ही लेगा सुकूत-ए-रेगज़ार
गूँजने से क़ब्ल ही बाँग-ए-दरा रुक जाएगी
कल न होगा कोई इस बस्ती में मेरा मुंतज़िर
कल मिरे तलवों ही में आवाज़-ए-पा रुक जाएगी
क्या तहफ़्फ़ुज़ दे सकेगी मुझ को वज़-ए-एहतियात
क्या दरीचे मूँद लेने से बला रुक जाएगी
(391) Peoples Rate This