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चुप थे बरगद ख़ुश्क मौसम का गिला करते न थे - नश्तर ख़ानक़ाही कविता - Darsaal

चुप थे बरगद ख़ुश्क मौसम का गिला करते न थे

चुप थे बरगद ख़ुश्क मौसम का गिला करते न थे

चल रही थीं आँधियाँ पत्ते सदा करते न थे

हम रसीदा थे कि देखें दूसरों को शो'ला-पा

थे सफ़र में और सफ़र की इब्तिदा करते न थे

बंद था पानी सफ़-आरा थे ग़नीम-ए-रू-सियाह

हम अदा इस पर भी रस्म-ए-कर्बला करते न थे

मुतमइन थे अहल-ए-मक़्तल नीम-जाँ कर के मुझे

कैसी हुश्यारी थी सर तन से जुदा करते न थे

हम को किस शब ज़िंदा रहने की हवस होती न थी

दिन में हम कब ख़ुद-कुशी का फ़ैसला करते न थे

कैसे दूर-अंदेश मुंसिफ़ थे कि इन्साफ़न मुझे

मानते थे बे-ख़ता लेकिन रिहा करते न थे

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In Hindi By Famous Poet Nashtar Khaanqahi. is written by Nashtar Khaanqahi. Complete Poem in Hindi by Nashtar Khaanqahi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.