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आप अपनी ज़ात में सिमटा हुआ आलम तमाम - नश्तर ख़ानक़ाही कविता - Darsaal

आप अपनी ज़ात में सिमटा हुआ आलम तमाम

आप अपनी ज़ात में सिमटा हुआ आलम तमाम

तुम को यूँ जाना कि था जाना हुआ आलम तमाम

कल तो बेगाना था लेकिन आज है बेगाना-तर

इक सर-ए-अंगुश्त पर रक्खा हुआ आलम तमाम

दस्तरस का ज़िक्र क्या है आगही की बात क्या

रू-ब-रू है गर्द में उड़ता हुआ आलम तमाम

गर बदल जाते तो थी दुनिया की हर शय हस्ब-ए-हाल

हम नहीं बदले तो है बदला हुआ आलम तमाम

जानता हूँ मैं अगर जागा तो ये सो जाएगा

अब हूँ ख़्वाबीदा तो है जागा हुआ आलम तमाम

उँगलियों के पेच से पेचीदा गिर्हें तह-ब-तह

नाख़ुनों के दरमियाँ उलझा हुआ आलम तमाम

इक मिरी ख़ातिर जो थे सब के दुआ-गो क्या हुए

उफ़ ये महरूमी कि है सहमा हुआ आलम तमाम

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In Hindi By Famous Poet Nashtar Khaanqahi. is written by Nashtar Khaanqahi. Complete Poem in Hindi by Nashtar Khaanqahi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.