Ghazals of Nashtar Khaanqahi
नाम | नश्तर ख़ानक़ाही |
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अंग्रेज़ी नाम | Nashtar Khaanqahi |
जन्म की तारीख | 1931 |
मौत की तिथि | 2006 |
ये दश्त-ओ-दमन कोह ओ कमर किस के लिए है
तेज़-रौ पानी की तीखी धार पर बहते हुए
तामीर हम ने की थी हमीं ने गिरा दिए
सुरमई धूप में दिन सा नहीं होने पाता
शजर आँगन का जब सूरज से लर्ज़ां होने लगता था
सहरा का पता दे न समुंदर का पता दे
रुख़ पे भूली हुई पहचान का डर तो आया
रुख़ बदलते हिचकिचाते थे कि डर ऐसा भी था
क़हर था हिजरत में ख़ुद को बे-अमाँ करना तिरा
पेशानी-ए-हयात पे कुछ ऐसे बल पड़े
न मिल सका कहीं ढूँडे से भी निशान मिरा
मुसाफ़िर ख़ाना-ए-इम्काँ में बिस्तर छोड़ जाते थे
मेरे बदन की आग ही झुलसा गई मुझे
क्या ख़बर है न मिले फिर कोई शीशा ऐसा
ख़ुश-फ़हमियों को दर्द का रिश्ता अज़ीज़ था
खिड़कियाँ मत खोल जिंस-ए-जाँ उठा ले जाएगा
कशिश तो अब भी ग़ज़ब की है नाज़नीनों में
कभी तो मुल्तवी ज़िक्र-ए-जहाँ-गर्दां भी होना था
इल्म किस को था कि तर्सील-ए-हवा रुक जाएगी
हर बार नया ले के जो फ़ित्ना नहीं आया
धज्जी धज्जी जुब्बा-ओ-दस्तार होते देखना
धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया
देखा नहीं देखे हुए मंज़र के सिवा कुछ
चुप थे बरगद ख़ुश्क मौसम का गिला करते न थे
छा गया सर पे मिरे गर्द का धुँदला बादल
बहुत क़रीब है पत-झड़ की रुत पलक न उठा
अभी तक जब हमें जीना न आया
आप अपनी ज़ात में सिमटा हुआ आलम तमाम
आख़िरी गाड़ी गुज़रने की सदा भी आ गई
आगे पहुँचा जल का धारा बजरा पीछे छूट गया