अब्बा का चालीसवाँ

बूढ़े ग़रीब बाप के मरने पे दफ़अतन

बेटे ने सोचा कैसे करूँ दफ़्न और कफ़न

अपने यहाँ तो मौत में ख़र्चे का है चलन

ग़म से निढाल बेटे के माथे पे थी शिकन

जो कुछ था पास दफ़्न-ओ-कफ़न में उठा दिया

ख़र्चे ने फिर तो मौत का सदमा भुला दिया

करना पड़ा जो दफ़न का ता-सुब्ह इंतिज़ार

मय्यत के पास चलती रही चाय बार बार

और मौत में जो आए थे बैरूनी रिश्ता-दार

चाय से उन की तोड़ा गया नींद का ख़ुमार

और इस के ब'अद चलता जो फिर पानदान है

लगता है सोगवार नहीं मेज़बान है

पुर्से को सुब्ह शाम फिर आते हैं रिश्ता-दार

खाना नहीं तो चाय कम-अज़-कम हो एक बार

चाय के साथ वाए में ख़र्चे हैं बे-शुमार

मुर्दे को छोड़ ख़र्चे को रोता है सोगवार

तीजे के ब'अद दसवाँ है फिर बीसवाँ भी है

फिर चंद रोज़ ब'अद ही चालीसवाँ भी है

हर रोज़ फ़ातिहा के लिए गोश्त चाहिए

सालन भी सिर्फ़ एक नहीं दो पकाइए

नज़्र-ओ-नियाज़ के लिए हलवा बनाइए

फिर रोज़ आने वालों को चाय पिलाइए

बेटा बिचारा दब गया क़र्ज़े के बार से

बरसों तक अब छुड़ाएगा पीछा उधार के

फिर इस के ब'अद बातें बनाती हैं औरतें

क्या क्या कमी रही ये बताती हैं औरतें

चालीसवाँ कुछ ऐसे कराती हैं औरतें

फ़रमाइशों के ढेर लगाती हैं औरतें

इस तरह मौत को भी तमाशा बना दिया

वो ए'तिराज़ उठाए कलेजा हिला दिया

बेटे ने नाम कर दिया रौशन जहान में

ऐसी किसी ने मौत न की ख़ानदान में

चालीसवाँ कुछ ऐसा किया आन-बान में

ज़ेवर बहू का बिक गया मसनूई शान में

वो मौत की कि कुम्बे में डंका बजा दिया

चालीसवें पे शहर को खाना खिला दिया

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In Hindi By Famous Poet Nashtar Amrohvi. is written by Nashtar Amrohvi. Complete Poem in Hindi by Nashtar Amrohvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.