सरहद-ए-आवाज़ दिल का दूर से पत्थर न देख
सरहद-ए-आवाज़ दिल का दूर से पत्थर न देख
ताइर-ए-शौक़-ए-नवा तूफ़ान के तेवर न देख
मतला-ए-अनवार है गो आज तेरा आसमाँ
डूबते सूरज की किरनों को मगर तन कर न देख
दे लब-ए-ख़ामोश तक आई हुई बातों पे ध्यान
गर सर-ए-मिज़्गाँ खुला इक दर्द का दफ़्तर न देख
बर्ग-ए-ख़ुश्क-ओ-तर रह-ए-ज़ेर-ओ-ज़बर इक वाहिमा
ऐ अदा-ए-कजरवी अब शोख़ी-ए-सरसर न देख
उस के जल्वों से परे इक दर्द की आवाज़ सुन
ख़्वाब की ताबीर से डर ख़्वाब का मेहवर न देख
साफ़-गोई जुज़्व-ए-ईमाँ है तो 'नासिर' बे-झिजक
जी में जो आ जाए कह दे जानिब-ए-मिम्बर न देख
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