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मिस्ल-ए-सहरा है रिफ़ाक़त का चमन भी अब के - नसीर तुराबी कविता - Darsaal

मिस्ल-ए-सहरा है रिफ़ाक़त का चमन भी अब के

मिस्ल-ए-सहरा है रिफ़ाक़त का चमन भी अब के

जल बुझा अपने ही शो'लों में बदन भी अब के

ख़ार-ओ-ख़स हूँ तो शरर-ख़ेज़ियाँ देखूँ फिर से

आँख ले आई है इक ऐसी किरन भी अब के

हम तो वो फूल जो शाख़ों पे ये सोचें पहरों

क्यूँ सबा भूल गई अपना चलन भी अब के

मंज़िलों तक नज़र आता है शिकस्तों का ग़ुबार

साथ देती नहीं ऐसे में थकन भी अब के

मुंसलिक एक ही रिश्ते में न हो जाए कहीं

तिरे माथे तिरे बिस्तर की शिकन भी अब के

बे-गुनाही के लिबादे को उतारो भी 'नसीर'

रास आ जाए अगर जुर्म-ए-सुख़न भी अब के

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In Hindi By Famous Poet Naseer Turabi. is written by Naseer Turabi. Complete Poem in Hindi by Naseer Turabi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.