उन से मायूस-ए-इल्तिफ़ात नहीं
उन से मायूस-ए-इल्तिफ़ात नहीं
गो ब-ज़ाहिर तवक़्क़ुआत नहीं
इश्क़ ही वजह-ए-मुश्किलात नहीं
यूँ भी ग़म से कहीं नजात नहीं
इश्क़ की अज़्मतें बजा लेकिन
इश्क़ ही मक़्सद-ए-हयात नहीं
जिन को आसाइशें मयस्सर हैं
वो भी आसूदा-ए-हयात नहीं
इश्क़ है ताब-आज़्मा लेकिन
आप चाहें तो कोई बात नहीं
वो ख़फ़ा और इक जहाँ दुश्मन
अब कोई सूरत-ए-हयात नहीं
अज़्म-ए-तकमील-ए-'आरज़ू' करते
ज़िंदगी को मगर सबात नहीं
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