इतना मानूस है दिल आप के अफ़्साने से
इतना मानूस है दिल आप के अफ़्साने से
अब किसी तौर बहलता नहीं बहलाने से
जाम-ओ-मीना के तअय्युन से है बाला साक़ी
ज़र्फ़ देखा नहीं जाता किसी पैमाने से
आओ तजदीद-ए-वफ़ा फिर से करें हम वर्ना
बात कुछ और उलझ जाएगी सुलझाने से
है समझना तो मोहब्बत से गुज़र ऐ हमदम
बात आएगी समझ में न यूँ समझाने से
अब न चाहेंगे किसी और को तस्लीम मगर
फ़ाएदा क्या है मिरे सर की क़सम खाने से
मैं तही-होश सही आप का इरशाद बजा
आप बेकार उलझने लगे दीवाने से
'आरज़ू' शिकवा-ब-लब हो तो रहे हो लेकिन
फ़ाएदा गुज़री हुई बात को दोहराने से
(544) Peoples Rate This