अजनबी किस ख़्वाब की दुनिया से आए हो
अजनबी किस ख़्वाब की दुनिया से आए हो
थके लगते हो
आँखों में कई सदियों की नींदें जागती हैं
फ़ासलों की गर्द पलकों पर जमी है
अजनबी! कैसी मसाफ़त से गुज़र कर आ रहे हो
कौन से देसों के क़िस्से
दर्द की ख़ामोश लय में गा रहे हो
दूर से नज़दीक आते जा रहे हो
अजनबी आओ!
किसी अगले सफ़र की रात से पहले
ज़रा आराम कर लो
फिर सुनेंगे दास्ताँ तुम से अनोखी सर-ज़मीनों की
हवा में तैरते रंगीं मकानों की मकीनों की
पड़ाव उम्र भर का है
अलाव तेज़ होने दो
मोहब्बत-ख़ेज़ होने दो
शनासा ख़्वाहिशों की ख़ुशबुएँ जलने लगी हैं
अजनबियत क़ुर्बतों के लम्स में सरशार
गुम-गश्ता ज़माने ढूँढती है
ज़िंदगी दुख दर्द भी क़रनों पुराने ढूँढती है!!
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