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मानूस हो चुके हैं तिरे आस्ताँ से हम - नसीम शाहजहाँपुरी कविता - Darsaal

मानूस हो चुके हैं तिरे आस्ताँ से हम

मानूस हो चुके हैं तिरे आस्ताँ से हम

अब ज़िंदगी बदल के उठेंगे यहाँ से हम

तन्हाइयाँ दिलों की भला किस तरह मिटें

कुछ अजनबी से आप हैं कुछ बद-गुमाँ से हम

अब आलम-ए-सुकूत ही रूदाद-ए-इश्क़ है

कुछ अर्ज़-ए-हाल कर नहीं सकते ज़बाँ से हम

है राज़-ए-बहर-ए-इश्क़ अजब हैरत-आफ़रीं

ये देखना है डूब के उभरें कहाँ से हम

बर्बाद बार बार नशेमन हुआ मगर

ग़ाफ़िल हैं आज तक निगह-ए-बाग़बाँ से हम

मिलता किसी नज़र का सहारा अगर हमें

थकते न यूँ हयात के बार-ए-गिराँ से हम

हासिल हुआ वो लुत्फ़ असीरी में ऐ 'नसीम'

ता उम्र बे-नियाज़ रहे आशियाँ से हम

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In Hindi By Famous Poet Naseem Shahjahanpuri. is written by Naseem Shahjahanpuri. Complete Poem in Hindi by Naseem Shahjahanpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.