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थके हुओं को जो मंज़िल कठिन ज़ियादा हुई - नसीम सहर कविता - Darsaal

थके हुओं को जो मंज़िल कठिन ज़ियादा हुई

थके हुओं को जो मंज़िल कठिन ज़ियादा हुई

सफ़र का अज़्म-ए-मुसम्मम लगन ज़ियादा हुई

उदास पेड़ों ने पत्तों की भेंट दे दी है

ख़िज़ाँ में रौनक़-ए-सहन-ए-चमन ज़ियादा हुई

ज़बाँ पे हब्स की ख़्वाहिश मचल मचल उठी

हवा चली तो घरों में घुटन ज़ियादा हुई

सफ़र का मरहला-ए-सख़्त ही ग़नीमत था

ठहर गए तो बदन की थकन ज़ियादा हुई

कभी तो सर्द लगा दोपहर का सूरज भी

कभी बदन के लिए इक करन ज़ियादा हुई

उरूस-ए-ज़ीस्त पे यूँ भी निखार क्या कम था

लहू लिबास किया तो फबन ज़ियादा हुई

तलब के होंटों पे आसूदगी का लफ़्ज़ कहाँ?

तलब वसीला-ए-दार-ओ-रसन ज़ियादा हुई

'नसीम' किस को था तहज़ीब-ए-फ़न का ध्यान यहाँ

हमारे अहद में तश्हीर-ए-फ़न ज़ियादा हुई

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In Hindi By Famous Poet Naseem Sahar. is written by Naseem Sahar. Complete Poem in Hindi by Naseem Sahar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.