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धूप से जिस्म बचाए रखना कितना मुश्किल है - नसीम सहर कविता - Darsaal

धूप से जिस्म बचाए रखना कितना मुश्किल है

धूप से जिस्म बचाए रखना कितना मुश्किल है

ख़ुद को साए साए रखना कितना मुश्किल है

ज़ाहिर में जो रस्ता सीधा लगता हो उस पर

अपने पैर जमाए रखना कितना मुश्किल है

आवाज़ों की भीड़ में इतने शोर-शराबे में

अपनी भी इक राय रखना कितना मुश्किल है

हम से पूछो हम दिल को समझाया करते थे

वहशी को समझाए रखना कितना मुश्किल है

सिर्फ़ परिंदे को मालूम है तेज़ हवाओं में

अपने पर फैलाए रखना कितना मुश्किल है

आज की रात हवाएँ बेहद सरकश लगती हैं

आज चराग़ जलाए रखना कितना मुश्किल है

दोस्तियों और दुश्मनियों की ज़द में रह के 'नसीम'

अपना-आप बचाए रखना कितना मुश्किल है

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In Hindi By Famous Poet Naseem Sahar. is written by Naseem Sahar. Complete Poem in Hindi by Naseem Sahar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.