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आप ही अपना सफ़र दुश्वार-तर मैं ने किया - नसीम सहर कविता - Darsaal

आप ही अपना सफ़र दुश्वार-तर मैं ने किया

आप ही अपना सफ़र दुश्वार-तर मैं ने किया

क्यूँ मलाल-ए-फुर्क़त-ए-दीवार-ओ-दर मैं ने किया

मेरे क़द को नापना है तो ज़रा इस पर नज़र

चोटियाँ ऊँची थीं कितनी जिन को सर मैं ने किया

चल दिया मंज़िल की जानिब कारवाँ मेरे बग़ैर

अपने ही शौक़-ए-सफ़र को हम-सफ़र मैं ने किया

मंज़िलें देती न थीं पहले मुझे अपना सुराग़

फिर जुनूँ में मंज़िलों को रहगुज़र मैं ने किया

हर क़दम कितने ही दरवाज़े खुले मेरे लिए

जाने क्या सोचा कि ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया

लफ़्ज़ भी जिस अहद में खो बैठे अपना ए'तिबार

ख़ामुशी को इस में कितना मो'तबर मैं ने किया

ज़िंदगी तरतीब तो देती रही मुझ को 'नसीम'

अपना शीराज़ा मगर ख़ुद मुन्तशर मैं ने किया

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In Hindi By Famous Poet Naseem Sahar. is written by Naseem Sahar. Complete Poem in Hindi by Naseem Sahar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.