न शिकवा लब तक आएगा न नाला दिल से निकलेगा
न शिकवा लब तक आएगा न नाला दिल से निकलेगा
मिरे ज़ब्त-ए-मोहब्बत का भरम मुश्किल से निकलेगा
न हसरत दिल से निकलेगी न अरमाँ दिल से निकलेगा
जो इस फंदे में फँस जाएगा वो मुश्किल से निकलेगा
ख़ुदा रक्खे ये पास-ए-वज़्अ' में तुम से भी बढ़ कर है
तुम्हीं आ कर निकालोगे तो अरमाँ दिल से निकलेगा
बहुत रोएगी दुनिया उस बशर की बद-नसीबी पर
जो दाग़-ए-आरज़ू ले कर तिरी महफ़िल से निकलेगा
न खींच ऐ मेहरबाँ सीने से मेरे तीर रहने दे
निकल जाएगा दम मेरा जो पैकाँ दिल से निकलेगा
ये मौजों के नहीं ऐ ना-ख़ुदा तक़दीर के बल हैं
सफ़ीना ग़र्क़ हो कर दामन-ए-साहिल से निकलेगा
जो दम निकले तो मेरी मुश्किलें आसान हो जाएँ
मगर ये भी तो मुश्किल है कि दम मुश्किल से निकलेगा
'नसीम' अच्छी ग़ज़ल पर दाद देंगे अहल-ए-दिल दिल से
उतर जाएगा दिल में शे'र जो भी दिल से निकलेगा
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