तुम्हारी तेग़ से आँखें लगी हैं मरने वालों की
ये लैला कब मिरी जाँ पर्दा-ए-महमिल से निकलेगी
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सीधा सच्चा तुम्हें ऐ जान-ए-जहाँ जाने कौन
जब किसी को ख़फ़ा करे कोई
जिधर देख तुम्हारी बज़्म में अग़्यार बैठे हैं
होंगे दिल-ओ-जिगर में निशाँ देख लीजिए
आप वो सब की जान लेते हैं
उन के पैकान पे पैकान चले आते हैं
ज़िक्र-ए-दुश्मन है नागवार किसे
दे दें अभी करे जो कोई ख़ूब-रू पसंद
ज़िक्र-ए-ईफ़ा कुछ नहीं वादा ही वादा हम से है
ग़ैर के घर बन के डाली जाएगी
शब-ए-फ़ुर्क़त क़ज़ा नहीं आती