ज़िक्र-ए-ईफ़ा कुछ नहीं वादा ही वादा हम से है
ज़िक्र-ए-ईफ़ा कुछ नहीं वादा ही वादा हम से है
रात दिन शाम ओ सहर इमरोज़ फ़र्दा हम से है
हम न कहते थे कि ये जौर-ओ-जफ़ा अच्छी नहीं
पूछ कुछ रोज़-ए-जज़ा अब तुम से है या हम से है
दूसरों के कहने सुनने पर न तुम जाओ न हम
तुम से बस कहना हमारा है तुम्हारा हम से है
शर्म-ए-वस्ल-ए-ग़ैर से उठती नहीं ऊँची नज़र
दर्द-ए-सर कैसा ये सब हीला-बहाना हम से है
कौन सी ख़ूबी है हम में जिस पर नाज़ाँ हों 'नसीम'
जो ज़माने से बुरा है वो भी अच्छा हम से है
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