शब-ए-फ़ुर्क़त क़ज़ा नहीं आती
शब-ए-फ़ुर्क़त क़ज़ा नहीं आती
लाख कहता हूँ आ नहीं आती
चुप हैं वो सुन के शिकवा-ए-अग़्यार
बात भी तो बना नहीं आती
वो तो वादे पे आ चुके ऐ मौत
तू भी आती है या नहीं आती
किस मरज़ की दवा हैं आप अगर
दर्द-ए-दिल की दवा नहीं आती
शीशा-ए-दिल है किस क़दर नाज़ुक
टूटने की सदा नहीं आती
हम हैं आज़ादा-रौ जहाँ में 'नसीम'
याँ हवस की हवा नहीं आती
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