सब लुत्फ़ है ख़ाक-ए-ज़िंदगी का
हो ख़ाना ख़राब आशिक़ी का
हर वक़्त की ज़िद बुरी है देखो
कहना भी किया करो किसी का
यूँ दाद वो देते हैं वफ़ा की
ये काम नहीं है आदमी का
दिलकश न हों क्यूँ 'नसीम' के शेर
शागिर्द है 'दाग़'-देहलवी का
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दिल की शामत आई जा कर फँस गया
होंगे दिल-ओ-जिगर में निशाँ देख लीजिए
ग़ैर के घर हैं वो मेहमान बड़ी मुश्किल है
अपनी महफ़िल में मुझे देख के कहता है वो बुत
बेताब हैं किसी की निगाहें नक़ाब में
दे दें अभी करे जो कोई ख़ूब-रू पसंद
शब-ए-फ़ुर्क़त क़ज़ा नहीं आती
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है
उन के पैकान पे पैकान चले आते हैं
रखना ख़म-ए-गेसू में या दिल को रिहा करना
चराग़-ए-शाम-ए-ग़रीबी था में ज़माने में
तुम्हारी तेग़ से आँखें लगी हैं मरने वालों की