रखना ख़म-ए-गेसू में या दिल को रिहा करना
रखना ख़म-ए-गेसू में या दिल को रिहा करना
कुछ कह तो सही ज़ालिम आख़िर तुझे क्या करना
क्या तुम से ज़ियादा है दुनिया में हसीं कोई
ईमान से कह देना इंसाफ़ ज़रा करना
सहनी भी जफ़ा उन की करनी भी वफ़ा उन से
उन की भी ख़ुशी करनी दिल का भी कहा करना
बोसा भी मुझे देना होंटों में भी कुछ कहना
जीने की दवा देना मरने की दुआ करना
तिरछी चितवन ने लाखों ही किए बिस्मिल
ऐ तुर्क तिरा नावक क्या जाने ख़ता करना
बे-दाद का अब शिकवा बेजा है 'नसीम' उन से
था तुम को मोहब्बत का इज़हार ही क्या करना
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