जिधर देख तुम्हारी बज़्म में अग़्यार बैठे हैं
जिधर देख तुम्हारी बज़्म में अग़्यार बैठे हैं
इधर दस पाँच बैठे हैं उधर दो चार बैठे हैं
इन्हीं दुम्बाला-दार आँखों ने मुझ को मार रक्खा है
इन्हीं छुरियों के मेरे दिल पे गहरे वार बैठे हैं
उन्हीं की मौत है जिन को तुम्हारे वस्ल की दहन है
वही सुख नींद सोते हैं जो हिम्मत हार बैठे हैं
तुम्हें क्या हो गया है बाम पर तुम क्यूँ नहीं आते
'नसीम'-ए-मुज़्तरिब कब से तह-ए-दीवार बैठे हैं
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