हम यार की ग़ैरों पे नज़र देख रहे हैं
हम यार की ग़ैरों पे नज़र देख रहे हैं
गो मुँह पे न लाएँगे मगर देख रहे हैं
मुँह मेरी तरफ़ है तो नज़र ग़ैर की जानिब
करते हैं किधर बात किधर देख रहे हैं
कै रोज़ रक़ीबों से निभी रस्म-ए-मोहब्बत
हम भी यही ऐ रश्क-ए-क़मर देख रहे हैं
क़ासिद से जो बीमार बहुत मुझ को सुना था
अख़बार में मरने की ख़बर देख रहे हैं
पुरसाँ नहीं कोई भी 'नसीम' अहल-ए-हुनर का
दुनिया की हवा शाम ओ सहर देख रहे हैं
(421) Peoples Rate This