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बहार आई है फिर वहशत के सामाँ होते जाते हैं - नसीम भरतपूरी कविता - Darsaal

बहार आई है फिर वहशत के सामाँ होते जाते हैं

बहार आई है फिर वहशत के सामाँ होते जाते हैं

मिरे सीने में दाग़ों के गुलिस्ताँ होते जाते हैं

मुझे बचपन कर के दिल-दही भी होती जाती है

जफ़ाएँ करते जाते हैं पशेमाँ होते जाते हैं

कहाँ जाता है ऐ दिल शिकवा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा करने

वहाँ बे-दाद करने के भी एहसाँ होते जाते हैं

'नसीम'-ए-ज़िंदा-दिल मरने लगे हैं ख़ूब-रूयों पर

ग़ज़ब है ऐसे दानिश-मंद नादाँ होते जाते हैं

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In Hindi By Famous Poet Naseem Bharat Puri. is written by Naseem Bharat Puri. Complete Poem in Hindi by Naseem Bharat Puri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.