जहाँ जहाँ भी हवस का ये जानवर जाए
जहाँ जहाँ भी हवस का ये जानवर जाए
दिलों से मेहर-ओ-मोहब्बत की फ़स्ल चर जाए
खुले हैं ऊँची हवेली के पालतू कुत्ते
फ़क़ीर-ए-राह ज़रा देख-भाल कर जाए
वहीं से हूँ मैं जहाँ से दिखाई देता हूँ
वहीं तिलक हूँ जहाँ तक मिरी नज़र जाए
है कोई देर से उस पार मुंतज़िर मेरा
रुका हुआ हूँ कि नद्दी ज़रा उतर जाए
वो बाद-ए-तुंद है हर पेड़ की ये कोशिश है
हवा के साथ कोई दूसरा शजर जाए
हुदूद-ए-ज़ात से आगे ख़ुदाओं की हद है
में सोचता हूँ अगर ज़ेहन काम कर जाए
भरी पड़ी है उफ़ूनत से इंच इंच ज़मीं
इस एक फूल की ख़ुशबू किधर किधर जाए
अभी तलक तिरे रस्ते में पुल-सिरात पे है
गुज़रने वाला ज़रूरी नहीं गुज़र जाए
'नसीम' गाँव की मस्जिद में रात काटेगा
इक अजनबी सा मुसाफ़िर है किस के घर जाए
(530) Peoples Rate This