दोस्त बन कर भी कहीं घात लगा सकती है
दोस्त बन कर भी कहीं घात लगा सकती है
मौत का क्या है किसी रूप में आ सकती है
इन मकानों में ये धड़का सा लगा रहता है
अगली बारिश दर-ओ-दीवार गिरा सकती है
तेरा दिन हो कि मिरी रात नहीं रुक सकते
अपने मेहवर पे ज़मीं ख़ुद को घुमा सकती है
ऐसी तरतीब से रौशन हैं तिरी महफ़िल में
एक ही फूँक चराग़ों को बुझा सकती है
मेरा फ़न मेरे ख़द-ओ-ख़ाल पे तक़्सीम हुआ
मेरी बीनी मिरी तस्वीर बना सकती है
फ़ितरतन उस की महक चारों तरफ़ फैलेगी
फूल से मौज-ए-सबा शर्त लगा सकती है
ख़ुश न हो इतना कि यूँ रौशनियाँ फूट पड़ें
इस चका-चौंद में बीनाई भी जा सकती है
गुदगुदाहट में 'नसीम' उस ने नहीं सोचा था
ये हँसी टूट के बच्चे को रुला सकती है
(438) Peoples Rate This