ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रे
ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रे
सद-शो'ला-ब-जाँ दहक रहे हैं ज़र्रे
मुज़्दा कि मह-ओ-मेहर के ऐवानों पर
कौंदों की तरह लपक रहे हैं ज़र्रे
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ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रे
सद-शो'ला-ब-जाँ दहक रहे हैं ज़र्रे
मुज़्दा कि मह-ओ-मेहर के ऐवानों पर
कौंदों की तरह लपक रहे हैं ज़र्रे
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