शालों के भँवर मचल रहे हों जैसे
अनवार-ए-शफ़क़ पिघल रहे हों जैसे
यूँ लोरियाँ गाता है इन आँखों में शबाब
मंदिर में चराग़ चल रहे हों जैसे
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रूह की आँच में उबाला है
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
अमृत से फ़ज़ाएँ दम-ब-दम धुलती हैं
ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रे
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
सरहद-ए-होश से गुज़रता हूँ
साक़िया साक़िया सँभाल उसे
ले के दिल दर्द पाएदार दिया
आप आए तो मुझ को याद आया
डूब कर पार उतर गए हैं हम
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
महफ़िल उन की साक़ी उन का