माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है
इक धुँद सी ता-हद्द-ए-नज़र छटती है
लहरा के भरे जिस्म को वो जान-ए-बहार
हँसती है तो आकाश पे पौ फटती है
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(985) Peoples Rate This
तूफ़ान-ए-ग़म की तुंद हवाओं के बावजूद
गुनाहों से हमें रग़बत न थी मगर या रब
तू मिरी ज़िंदगी का परतव है
अल्फ़ाज़ की रग रग में रचाता हूँ लहू
तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम
अमृत से फ़ज़ाएँ दम-ब-दम धुलती हैं
लाख काटो रगें सदाक़त की
ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
ग़म की रातों के ख़्वाब लाया हूँ
कश्मकश
अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन था
एक एक्ट्रेस