जब अहल-ए-गुलिस्ताँ को शुऊ'र आएगा
जब दीदा-ए-हस्सास में नूर आएगा
फूलों की लताफ़त भी गिराँ गुज़रेगी
काँटों की चुभन में भी सुरूर आएगा
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1039) Peoples Rate This
तूफ़ान-ए-ग़म की तुंद हवाओं के बावजूद
आँखों में सहर झलक रही है गोया
अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन था
बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना
दुनिया है इरम से भी हसीं देख ज़रा
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं
अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि तिरे पास बैठ कर
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
लाख काटो रगें सदाक़त की
रात की पुर-सुकूत ज़ुल्मत में
फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है