तू मरी ज़िंदगी का परतव है
में तिरी आरज़ू का साया हूँ
फिर भी तुझ को मैं हद्द-ए-इम्काँ तक
एहतियातन पुकार आया हूँ
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माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है
डूब कर पार उतर गए हैं हम
गुनाहों से हमें रग़बत न थी मगर या रब
अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि तिरे पास बैठ कर
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना
एहसास-ए-नशात की कमी देखोगे
एक धोका है ये शब-रंग सवेरा क्या है
नारवा है किसी की हमराही
महफ़िल उन की साक़ी उन का
डस गई तेरी काएनात मुझे