मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र के चेहरे पर
हादसों की कई ख़राशें हैं
ये मिरे शेर मेरे शेर नहीं
एक सद-चाक दिल की क़ाशें हैं
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कैफ़ पर भी है कैफ़ का आलम
राख
ग़म की रातों के ख़्वाब लाया हूँ
तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
तू मिरी ज़िंदगी का परतव है
ख़ुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा
अमृत से फ़ज़ाएँ दम-ब-दम धुलती हैं
चाँदनी से धुली हुई रातें
रौनक़ बढ़ेगी रू-ए-नशात-ए-जमाल की
साक़िया साक़िया सँभाल उसे
तूफ़ान-ए-ग़म की तुंद हवाओं के बावजूद