मैं तो क्या मुझ को देखने वाला
अब मिरी बेबसी पे रोता है
बात करता हूँ होंट जलते हैं
साँस लेता हूँ दर्द होता है
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चाँदनी से धुली हुई रातें
ले के दिल दर्द पाएदार दिया
शाम-ए-वादा का ढल गया साया
इस ग़म-ओ-यास के समुंदर में
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
कश्मकश
इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
रूह की आँच में उबाला है
महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयाँ
एहसास-ए-नशात की कमी देखोगे
रात की पुर-सुकूत ज़ुल्मत में