लाख काटो रगें सदाक़त की
कब सदाक़त की रूह मरती है
इस के इक एक क़तरा-ए-ख़ूँ से
इक नई ज़िंदगी उभरती है
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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दुनिया है इरम से भी हसीं देख ज़रा
मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र के चेहरे पर
कश्मकश
ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था
राख
चाँदनी से धुली हुई रातें
ये सोच कर भी हँस न सके हम शिकस्ता-दिल
जब अहल-ए-गुलिस्ताँ को शुऊ'र आएगा
एक एक्ट्रेस
एक आम सी लड़की
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रे