डस गई तेरी काएनात मुझे
खा गए तेरे हादसात मुझे
जाने क्यूँ फिर भी आज तक तुझ पर
प्यार आता है ऐ हयात मुझे
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(725) Peoples Rate This
ग़म की रातों के ख़्वाब लाया हूँ
अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन था
चेहरे की तब-ओ-ताब में कौंद लपके
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
आप आए तो मुझ को याद आया
चाँदनी से धुली हुई रातें
जब अहल-ए-गुलिस्ताँ को शुऊ'र आएगा
महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयाँ
ले के दिल दर्द पाएदार दिया
तूफ़ान-ए-ग़म की तुंद हवाओं के बावजूद
रात की पुर-सुकूत ज़ुल्मत में