चोट खा कर भी मुस्कुराता हूँ
दर्द-ए-दिल से भी लुत्फ़ उठाता हूँ
दोस्त ही ख़ंदा-ज़न नहीं मुझ पर
ख़ुद भी अपनी हँसी उड़ाता हूँ
Mir Taqi Mir
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तूफ़ान-ए-ग़म की तुंद हवाओं के बावजूद
मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र के चेहरे पर
साक़िया साक़िया सँभाल उसे
बिजलियों की हँसी उड़ाने को
ए'तिराफ़
फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है
ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था
गुनाहों से हमें रग़बत न थी मगर या रब
एक क्लर्क लड़की
माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है
चाँदनी रात की ख़मोशी में