चाँदनी से धुली हुई रातें
एक गुलफ़म से मुलाक़ातें
मेरे माज़ी मिरे हसीं माज़ी
हाए क्या हो गईं तिरी बातें
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आप आए तो मुझ को याद आया
तूफ़ान-ए-ग़म की तुंद हवाओं के बावजूद
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन था
हयात है कि मुसलसल सफ़र का आलम है
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
चाँदनी रात की ख़मोशी में
अल्फ़ाज़ की रग रग में रचाता हूँ लहू
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है
नारवा है किसी की हमराही