दुनिया है इरम से भी हसीं देख ज़रा
आकाश पे हँसती है ज़मीं देख ज़रा
आब आब हुए जाते हैं माह ओ अंजुम
लौ देती है ज़र्रों की जबीं देख ज़रा
Anwar Masood
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महफ़िल उन की साक़ी उन का
सरहद-ए-होश से गुज़रता हूँ
मैं तो क्या मुझ को देखने वाला
तू मिरी ज़िंदगी का परतव है
ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
ए'तिराफ़
फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
इस ग़म-ओ-यास के समुंदर में
आप आए तो मुझ को याद आया
हयात है कि मुसलसल सफ़र का आलम है
ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था