चेहरे की तब-ओ-ताब में कौंद लपके
आँखों में हसीन रात पलकें झपके
एहसास की उँगलियाँ जो छू लें उन को
भीगे हुए अन्फ़ास से अमृत टपके
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महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयाँ
एहसास-ए-नशात की कमी देखोगे
साक़िया साक़िया सँभाल उसे
दुनिया है इरम से भी हसीं देख ज़रा
आप आए तो मुझ को याद आया
आँखों में सहर झलक रही है गोया
सरहद-ए-होश से गुज़रता हूँ
चोट खा कर भी मुस्कुराता हूँ
शाम-ए-वादा का ढल गया साया
कैफ़ पर भी है कैफ़ का आलम
नारवा है किसी की हमराही