बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
रूमान का बहता हुआ धारा ले कर
उतरी है मिरे ज़ेहन में फिर याद तिरी
महताब की किरनों का सहारा ले कर
Allama Iqbal
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रूह की आँच में उबाला है
एक धोका है ये शब-रंग सवेरा क्या है
रौनक़ बढ़ेगी रू-ए-नशात-ए-जमाल की
जब अहल-ए-गुलिस्ताँ को शुऊ'र आएगा
ख़ुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा
एक एक्ट्रेस
ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था
फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है
कैफ़ पर भी है कैफ़ का आलम
महफ़िल उन की साक़ी उन का
अमृत से फ़ज़ाएँ दम-ब-दम धुलती हैं
महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयाँ