अल्फ़ाज़ की रग रग में रचाता हूँ लहू
ताबिंदा ख़यालों को पिलाता हूँ लहू
हर शेर की मेहराब में मशअ'ल की तरह
मैं अपनी जवानी का जलाता हूँ लहू
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(723) Peoples Rate This
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
महफ़िल उन की साक़ी उन का
एक आम सी लड़की
कश्मकश
मेरी ग़मगीन ओ ज़र्द सूरत को
जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं
मस्लहत
ये सोच कर भी हँस न सके हम शिकस्ता-दिल
लाख काटो रगें सदाक़त की
बिजलियों की हँसी उड़ाने को
तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम