ये सोच कर भी हँस न सके हम शिकस्ता-दिल
यारान-ए-ग़म-गुसार का दिल टूट जाएगा
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कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
राख
गुनाहों से हमें रग़बत न थी मगर या रब
कैफ़ पर भी है कैफ़ का आलम
डूब कर पार उतर गए हैं हम
एक आम सी लड़की
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
मेरी ग़मगीन ओ ज़र्द सूरत को
डस गई तेरी काएनात मुझे