महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयाँ
नाज़ुक सा है जो फ़र्क़ गुनाह ओ सवाब में
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(454) Peoples Rate This
ग़म की रातों के ख़्वाब लाया हूँ
चेहरे की तब-ओ-ताब में कौंद लपके
ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था
डस गई तेरी काएनात मुझे
ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
इस ग़म-ओ-यास के समुंदर में
आँखों में सहर झलक रही है गोया
तू मिरी ज़िंदगी का परतव है
अल्फ़ाज़ की रग रग में रचाता हूँ लहू
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
ये सोच कर भी हँस न सके हम शिकस्ता-दिल