ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
मगर लोगों से अब ख़ाइफ़ ख़ुदा है
Wasi Shah
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
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Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम
डस गई तेरी काएनात मुझे
चोट खा कर भी मुस्कुराता हूँ
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन था
मैं तो क्या मुझ को देखने वाला
कैफ़ पर भी है कैफ़ का आलम
आप आए तो मुझ को याद आया
नारवा है किसी की हमराही
ले के दिल दर्द पाएदार दिया
जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं
रात की पुर-सुकूत ज़ुल्मत में