अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि तिरे पास बैठ कर
तेरा ही इंतिज़ार किया है कभी कभी
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एहसास-ए-नशात की कमी देखोगे
नारवा है किसी की हमराही
बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना
ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था
ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
एक धोका है ये शब-रंग सवेरा क्या है
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
महफ़िल उन की साक़ी उन का
बिजलियों की हँसी उड़ाने को
इंतिक़ाम-ए-ग़म-ओ-अलम लेंगे
डस गई तेरी काएनात मुझे
चाँदनी रात की ख़मोशी में