कश्मकश
सोचते सोचते फिर मुझ को ख़याल आता है
वो मिरे रंज-ओ-मसाइब का मुदावा तो न थी
रंग-अफ़्शाँ थी मिरे दिल की ख़लाओं में मगर
एक औरत थी इलाज-ए-ग़म दुनिया तो न थी
मेरे इदराक के नासूर तो रिसते रहते
मेरी हो कर भी वो मेरे लिए क्या कर लेती
हसरत-ओ-यास के गम्भीर अँधेरे में भला
एक नाज़ुक सी किरन साथ कहाँ तक देती
उस को रहना था ज़र-ओ-सीम के ऐवानों में
रह भी जाती वो मिरे साथ तो रहती कब तक
एक मग़रूर सहूकार की प्यारी बेटी
भूक और प्यास की तकलीफ़ को सहती कब तक
एक शाएर की तमन्नाओं को धोका दे कर
उस ने तोड़ी है अगर प्यार भरे गीत की लय
इस पे अफ़्सोस है क्यूँ इस पे तअ'ज्जुब कैसा
ये मोहब्बत भी तो एहसास का इक धोका है
फिर भी अनजाने में जब शहर की राहों में कहीं
देख लेता हूँ मैं दोशीज़ा जमालों के हुजूम
रूह पर फैलने लगता है उदासी का ग़ुबार
ज़ेहन में रेंगने लगते हैं ख़यालों के हुजूम
सोचते सोचते फिर मुझ को ख़याल आता है
वो मिरे रंज-ओ-मसाइब का मुदावा तो न थी
रंग-अफ़्शाँ थी मिरे दिल की ख़लाओं में मगर
एक औरत थी इलाज-ए-ग़म-ए-दुनिया तो न थी
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