एक आम सी लड़की
वो एक आम सी लड़की है देख कर जिस को
न जाने क्यूँ मुझे ऐसा ख़याल आता है
कि उस के हँसने का अंदाज़ ये बताता है
हुई नहीं है ग़म-ए-दिल से रस्म-ओ-राह अभी
पड़ी नहीं है कोई चोट अभी रग-ए-जाँ पर
किसी निगाह से उलझी नहीं निगाह अभी
वो एक आम सी लड़की इक ऐसा जज़्बा है
मिली नहीं जिसे अल्फ़ाज़ में पनाह अभी
वो एक आम सी लड़की है जैसे छाई हुई
मिरे जवान ख़यालों पे बे-ख़ुदी की तरह
ख़याल आता है इक फूल बनने वाली है
वो कम-सिनी जो है मुँह-बंद सी कली की तरह
जो रंग बन के है महबूस उस के पैकर में
वो बू-ए-हुस्न तो फैलेगी रौशनी की तरह
वो एक आम सी लड़की है जिस के सादा नुक़ूश
चमक उट्ठेंगे मोहब्बत की सर्द आहों से
जहाँ पे फूल तो क्या दिल बुझे हुए होंगे
गुज़रने वाली है वो इन हसीन राहों से
अभी तो ख़ैर से मासूमियत टपकती है
मगर शराब भी टपकेगी उन निगाहों से
वो एक आम सी लड़की है जिस के बारे में
न जाने ज़ेहन में आते हैं क्यूँ ख़याल कई
मगर बड़े ही तहय्युर से आज सुबह के वक़्त
सुनी है मैं ने मोहल्ले में एक बात नई
गुज़िश्ता शब को वही एक आम सी लड़की
ख़ुद अपने घर के मुलाज़िम के साथ भाग गई
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