डूब कर पार उतर गए हैं हम
डूब कर पार उतर गए हैं हम
लोग समझे कि मर गए हैं हम
ऐ ग़म-ए-दहर तेरा क्या होगा
ये अगर सच है मर गए हैं हम
ख़ैर-मक़्दम किया हवादिस ने
ज़िंदगी में जिधर गए हैं हम
या बिगड़ कर उजड़ गए हैं लोग
या बिगड़ कर सँवर गए हैं हम
मौत को मुँह दिखाएँ क्या या रब
ज़िंदगी ही में मर गए हैं हम
हाए क्या शय है नश्शा-ए-मय भी
फ़र्श से अर्श पर गए हैं हम
आरज़ूओं की आग में जल कर
और भी कुछ निखर गए हैं हम
जब भी हम को किया गया महबूस
मिस्ल-ए-निकहत बिखर गए हैं हम
शादमानी के रंग-महलों में
'शाद' बा-चश्म-ए-तर गए हैं हम
(456) Peoples Rate This